Thursday, 20 October 2016

ब्रह्मकर्म

ब्रह्मकर्म

शास्त्री प्रवीण जटाशंकर जी त्रिवेदी द्वारा संकलित ग्रंथ
इसमें है।
संध्या
ग्रहशान्ति ( चतुर्वेदोक्त)
कुशकण्डिका हिन्दी भाषा टीका सहित
स्थापित देव पूजन समंत्रक व नाम मंत्रक सहित
शिव पूजन, पार्थिव चिन्तामणि
पंचवक्रपूजन, रुद्राष्टाध्यायी
रुद्रस्वाहाकार
हेमाद्रि, दशविधि स्नान सहित
देवीराजोपचार पूजा
देवी सप्तशती
बीजमंत्र दुर्गासप्तशती
श्रीमाली ब्राह्मणों के विवाह विधि सहित 16 संस्कार
नक्षत्र पूजा विधान
अर्क व कुम्भ विवाह विधि
कालसर्प पूजा
आरतियों व विविध उपयोगी सामग्री सहित
मण्डल व मुद्रा के फोटो सहित
संपर्क सूत्र 9820488163
9414153628
shreemaal@yahoo.co.in

दीपावली के मुख्य पांच त्यौहार 2016

दीपावली के मुख्य पांच त्यौहार

धनतेरस - शुक्रवार, 28.10.2016
नरकचतुर्दशी-शनिवार,  29.10.2016
दीपावली- रविवार, 30.10.2016
नूतन वर्श- सोमवार, 31.10.2016
भाई दूज-मंगलवार, 01.11.2016
धनतेरस
आयुर्वेद व चिकित्सा जगत के गुरु भगवान धन्वंतरि माने गए है। वैद्य व चिकित्सक आज के दिन धन्वंतरि की पूजा करते है व व्यापारी भी इस दिन गादी बिछाते है।
  श्री कुबेर पूजा
संवत् 2073 कार्तिक कृश्णा 13 शुक्रवार ता. 28.10.2016 को शुभ समय
प्रातः 6.47 से 8.12 चर
सुबह 8.12 से 9.36 लाभ
सुबह 9.36 से 11.00 अमृत
  दोपहर 12.25 से 13.49 शुभ
       शाम 4.38 से 6.02 चर
  रात्रि 9.14 से 10.49 लाभ
नरकचतुर्दशी
शनि वार को नरक चतुर्दशी व रूप चौदस मनाई जायेगी। रूप निखारने के लिए यह दिन शुभ माना गया है। इस दिन दीप दान का महत्व है।
 सुबह 8.12 से 9.36 शुभ वेला।
12.25 से 13.49 चर
13.49 से 15.13 लाभ
15.13 से 16.37 अमृत
दीपावली

दीपावली मनाने का सामान्यतः कारण यह माना जाता है कि भगवान राम 14 वर्श का वनवास पूरा करके अयोध्या आये थे परन्तु इस के अलावा भी निम्न दस कारण माने जा सकते है-
1. लक्ष्मी अवतरण- कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मां लक्ष्मी समुद्र मंथन द्वारा धरती पर प्रकट हुई थी। इस लिए इस पर्व को लक्ष्मी के स्वागत के रूप में मनाते है और लक्ष्मी कें स्वागत हेतु घर को सजाया व संवारा जाता है। 
2. भगवान विश्णु द्वारा लक्ष्मी को बचाना- इस घटना का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है कि इस दिन भगवान विश्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से माता लक्ष्मी को मुक्त करवाया था।
3. भगवान राम की विजय- रामायण के अनुसार इस दिन भगवान राम, सीता व लक्ष्मण सहित 14 वर्श का वनवास पूर्ण कर अयोध्या वापिस लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या को दीप माला से सजाया था।
4. नरकासुर वध- भगवान श्रीकृश्ण ने नरकासुर का वध कर 16000 नारियों को मुक्त करवाया था। इस खुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया।
5. पाण्डवों की वापसी- महाभारत के अनुसार जब इसी दिन पाण्डव 12 वर्श का वनवास व 13 वा वर्श अज्ञात वास भोग कर वापस आये थे।
6. विक्रमादित्य का राजतिलक- राजा विक्रमादित्य का प्रसंग भी इसी दिन से जुड़ा है। बताया जाता है कि राजा विक्रमादित्य का राजतिलक इस दिन किया गया था।
7. आर्य समाज की स्थापना-स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी।
8. जैन धर्म- दीपावली के दिन भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
9. सिक्ख धर्म के अनुसार इस दिन सिक्ख धर्म के तीसरे गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे। इसके अलावा सन् 1577 में अमृतसर के हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास भी दीपावली के दिन ही किया गया था।
10. सन् 1619 में सिक्ख गुरु हरगोविन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओं के साथ मुक्त किया जाना भी इस दिन की प्रमुख ऐतिहासिक घटना रही है। इस लिए सिक्ख समाज बंदी दिवस के रूप में भी मनाते है। इनको मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबंद किया हुआ था।
दीपावली, भारत में हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे दीपावली या दीवाली नाम दिया गया है। दीपावली का अर्थ होता है, दीपों की अवलि यानि पंक्ति। इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्जित इस त्यौहार को दीपावली कहा जाता है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक में आती है और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती है। जो घर हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध होता है वहां निवास करती है।
भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है। क्योंकि स्वयं जलता है पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेशता के कारण धार्मिक पुस्तकों में इसे ब्रह्म स्वरूप माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि दीपदान से शारीरिक व आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता वहां दीपक का प्रकाश पहंच जाता है। इसलिए ही दीपक को सूर्य का भाग ‘सूर्यांश संभवो दीपः’ कहा जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है। यज्ञ देवताओं व मनुश्यों के बीच संवाद साधने का माध्यम है। यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक पूजा का महत्वपूर्ण भाग है।
दीपावली के मुख्य बिन्दु
सुपारी में कलावा लपेटकर लक्ष्मी पूजा करें फिर अक्षत, पुश्प, रोली से पूजा करें तत्पश्चात उसे धन रखने के स्थान पर रख दें।
लक्ष्मी पूजा में श्रीयन्त्र, कुबेर यंत्र एकाक्षी नारियल आदि रखकर विधिवत पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
दीपावली पर श्वेतार्क गणेश जी को घर लायें फिर विधिवत पूजा करें।
मां लक्ष्मी को दक्षिणावर्ती शंख अति प्रिय है, इसलिए दीपावली के दिन दक्षिणावर्ती शंख लाकर पूजा करें व घर में रखें।  
दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के दौरान एक साबूत हल्दी की गांठ पूजन करने से घर में धन बना रहता है।
लक्ष्मी पूजा के दिन एक नारियल को हरे कपड़ें में लपेटकर उस पर रोली से स्वास्तिक बनायें व पूजा स्थल पर कलश पर रखें।
दीपावली की रात्रि पीली कौड़ियों, रोली, कुमकुम, अक्षत व पुश्प से पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
अष्टलक्ष्मी की पूजा करें।
धनलक्ष्मी, यशलक्ष्मी, आयु लक्ष्मी, वाहनलक्ष्मी, स्थिरलक्ष्मी, सत्यलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी व गृहलक्ष्मी।
मतांतर से- धन या वैभवलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, अधिलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, ऐश्वर्यलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी व संतानलक्ष्मी।


संवत् 2073 कार्तिक कृश्णा 30 रविवार ता. 30.10.2016 गादी स्थापना, स्याही भरना, कलम दवात संवारना
प्रातः 08.13 से 9.37 चर
प्रातः 9.37 से 11.01 लाभ
सुबह 11.01 से 12.25 अमृत
                        दोपहर 1.49 से 3.13 शुभ
       शाम 6.01 से 7.37 शुभ
शाम 7.37 से 9.13 अमृत
रात्रि 9.13 से 10.49 चर
               रात्रि 02.01 से 03.37 लाभ

श्री पूजन

वृश्चिक लग्न प्रातः 07.59 से 10.13 तक,
धन लग्न प्रातः 10.13 से 12.20 तक
अभिजित् मुहूर्त 11.58 से 12.46,
 कुम्भ लग्न दोपहर 02.09 से 03.46 तक,
 वृशभ लग्न शाम 19.04 से 21.04 तक,
मिथुन लग्न रात्रि 21.04 से 23.17 तक।
सिंह लग्न अर्द्ध रात्रि 01.33 से 03.41 तक
नूतन वर्ष
गुजरात से लेकर दक्षिण भारत में इस दिन से नवीन विक्रम संवत्सर व वर्श शुरू होता है। इस दिन सभी रिश्तेदार व मित्र वर्ग एक दूसरे के घर जाकर नये वर्श की बधाईयां देते है। व्यापारी नवीन वर्श की रोकड़ बहीं शुरू करते है।
श्री रोकड़ मिलान लेखन
संवत् 2073 कार्तिक शुक्ला 1 सोमवार, ता. 31.10.2016
प्रातः 06.49 से 08.13 अमृत वेला,
09.37 से 11.01 तक शुभ वेला

भाई दूज


भाई दूज का त्यौहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ करता है। यह त्यौहार के दो दिन बाद मनाया जाता है।
हिन्दु धर्म में भाई बहन के प्रतीक दो त्यौहार मनाये जाते है। एक रक्षा बंधन जिसमें भाई बहन की रक्षा की प्रतिज्ञा करता है। व दूसरा भाई दूज इसमें बहनें भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती है। 
भाई दूज के दिन बहनें भाई के स्वस्थ व दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती है। इस दिन बहने भाईयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती है। यदि गंगा यमुना जाना नहीं हो तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।
यदि बहनें भाई को अपने हाथ से भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कश्ट दूर होते है। इस दिन चावल खिलाए। बहन चचेरी या ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि बहन पास में नहीं हो तो गाय, नदी आदि स्त्री तत्व पदार्थ का ध्यान करके उनके समीप बैठकर भोजन करना भी शुभ माना जाता है।
इस दिन यमराज व यमुना जी की कथा सुनकर पूजा करनी चाहिए।