अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च।
दुस्वप्ननाशिनीं धन्या प्रपद्येहं शमीं शुभाम्
विजयादशमी को करें शमी (खेजड़ी) पूजन
ब्रह्मकर्म रचयिता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी भीनमाल ने बताया कि दशहरे को दशानन को अग्नि को समर्पित करने के साथ और भी पूजन किया जाता है।
स्कंदपुराण के अनुसार विजयादशमी को अपराजिता देवी का पूजन करना चाहिए। यह पूजन घर के उत्तर-पूर्व दिशा में अपराह्न के समय में विजय व कल्याण की भावना से करना चाहिए। पूजन के ईशान कोण में साफ व स्वच्छ स्थान को गोबर आदि से लीप कर शुद्ध करना चाहिए। उसके बाद चावल आदि से अष्टदल बनाकर संकल्प लें। उसके बाद बीच में अपराजिता देवी की स्थापना करें। उसके दायें व बायें जया व विजया देवी का भी आवाहन कर क्रिया शक्ति व उमा शक्ति को नमस्कार कर षोडशोपचार (आवाह्न, आसन, पाद्यं, अघ्र्यं, स्नान, पंचामृत, गंधोदकादि स्नान, अभिषेक, वस्त्र,यज्ञोपवीत,चंदन,अक्षत,पुष्पं, सौभाग्यद्रव्याणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं, ताम्बूलं, फल, दक्षिणा, आरति, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा, नमस्कार )पूजन करें। पूजन के पश्चात् शमी वृक्ष के पास जाकर उनका पूजन करें। लौकिक भाषा में शमी को खेजड़ी भी कहते है। ऐसा करने के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व ताम्बें का सिक्का रखें फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास की मिट्टी व कुछ पत्तें घर लेकर आये व पवित्र स्थान पर रखे।
त्रिवेदी ने बताया कि यह पूजन शमी का अर्थ शत्रुओं का नाश करने वाला होता है।
शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका। धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया। तत्रनिर्विघ्नकत्र्रीत्वंभव श्रीरामपूजिते।।
अर्थ- शमी पापों का शमन करती है। शमी के कांटें तांबे के रंग के होते है, यह अर्जुन के बाणों को धारण करती है। हे शमी! राम ने तुम्हारी पूजा की है, मैं यथा काल विजय यात्रा पर ही निकलूंगा। तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्न कारक व सुख कारक बनाओं।
त्रिवेदी ने बताया कि
भगवान राम के पूर्वज महाराज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी समस्त धन सम्पदा दान कर पर्णकुटी में निवास करने लगे थे। ऐसे में अपनी गुरु दक्षिणा के ऋण से मुक्त होने के लिए कौत्स मुनि वहां पधारें व राजा रघु से चैदह करोड़ स्वर्ण मुद्रायें मांगी। ऐसे समय रघु ने ब्राह्मण बालक को धन देने हेतु कुबेर पर आक्रमण किया तब कुबेर ने शमी व अश्मंतक के वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की बारीश की। तब से शमी व अश्मंतक की पूजा की जाती है। पूजा के बाद अश्मंतक के पत्ते घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ।
शमी के नीचे दीपक जलाने से शत्रु पक्ष से युद्ध व मुकदमों में विजय मिलती है।
अन्य कारण।
भगवान राम ने लंका पर विजय हेतु शमी वृक्ष की पूजा की थी।
पाण्डवों ने वनवास के अज्ञात वास के समय अपने शस्त्रों को शमी वृक्ष पर छिपा कर रखा था तब से इसकी पूजा की जाती है।
विजयादशमी के दिन क्षत्रिय अस्त्र व शस्त्रों की पूजा करते है, वहीं ब्राह्मण वर्ग शमी (खेजड़ी) जिसने पाण्डवों के शस्त्रों को अपने पास रखा था, की पूजा करते है।
दुस्वप्ननाशिनीं धन्या प्रपद्येहं शमीं शुभाम्
विजयादशमी को करें शमी (खेजड़ी) पूजन
ब्रह्मकर्म रचयिता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी भीनमाल ने बताया कि दशहरे को दशानन को अग्नि को समर्पित करने के साथ और भी पूजन किया जाता है।
स्कंदपुराण के अनुसार विजयादशमी को अपराजिता देवी का पूजन करना चाहिए। यह पूजन घर के उत्तर-पूर्व दिशा में अपराह्न के समय में विजय व कल्याण की भावना से करना चाहिए। पूजन के ईशान कोण में साफ व स्वच्छ स्थान को गोबर आदि से लीप कर शुद्ध करना चाहिए। उसके बाद चावल आदि से अष्टदल बनाकर संकल्प लें। उसके बाद बीच में अपराजिता देवी की स्थापना करें। उसके दायें व बायें जया व विजया देवी का भी आवाहन कर क्रिया शक्ति व उमा शक्ति को नमस्कार कर षोडशोपचार (आवाह्न, आसन, पाद्यं, अघ्र्यं, स्नान, पंचामृत, गंधोदकादि स्नान, अभिषेक, वस्त्र,यज्ञोपवीत,चंदन,अक्षत,पुष्पं, सौभाग्यद्रव्याणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं, ताम्बूलं, फल, दक्षिणा, आरति, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा, नमस्कार )पूजन करें। पूजन के पश्चात् शमी वृक्ष के पास जाकर उनका पूजन करें। लौकिक भाषा में शमी को खेजड़ी भी कहते है। ऐसा करने के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी व ताम्बें का सिक्का रखें फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास की मिट्टी व कुछ पत्तें घर लेकर आये व पवित्र स्थान पर रखे।
त्रिवेदी ने बताया कि यह पूजन शमी का अर्थ शत्रुओं का नाश करने वाला होता है।
शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका। धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया। तत्रनिर्विघ्नकत्र्रीत्वंभव श्रीरामपूजिते।।
अर्थ- शमी पापों का शमन करती है। शमी के कांटें तांबे के रंग के होते है, यह अर्जुन के बाणों को धारण करती है। हे शमी! राम ने तुम्हारी पूजा की है, मैं यथा काल विजय यात्रा पर ही निकलूंगा। तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्न कारक व सुख कारक बनाओं।
त्रिवेदी ने बताया कि
भगवान राम के पूर्वज महाराज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी समस्त धन सम्पदा दान कर पर्णकुटी में निवास करने लगे थे। ऐसे में अपनी गुरु दक्षिणा के ऋण से मुक्त होने के लिए कौत्स मुनि वहां पधारें व राजा रघु से चैदह करोड़ स्वर्ण मुद्रायें मांगी। ऐसे समय रघु ने ब्राह्मण बालक को धन देने हेतु कुबेर पर आक्रमण किया तब कुबेर ने शमी व अश्मंतक के वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं की बारीश की। तब से शमी व अश्मंतक की पूजा की जाती है। पूजा के बाद अश्मंतक के पत्ते घर लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने का रिवाज प्रचलित हुआ।
शमी के नीचे दीपक जलाने से शत्रु पक्ष से युद्ध व मुकदमों में विजय मिलती है।
अन्य कारण।
भगवान राम ने लंका पर विजय हेतु शमी वृक्ष की पूजा की थी।
पाण्डवों ने वनवास के अज्ञात वास के समय अपने शस्त्रों को शमी वृक्ष पर छिपा कर रखा था तब से इसकी पूजा की जाती है।
विजयादशमी के दिन क्षत्रिय अस्त्र व शस्त्रों की पूजा करते है, वहीं ब्राह्मण वर्ग शमी (खेजड़ी) जिसने पाण्डवों के शस्त्रों को अपने पास रखा था, की पूजा करते है।