वनस्पति से ग्रह शांति
संसार में मानव मात्र यही चाहता कि वह हमेशा सुखी रहे पर ऐसा हमेशा नहीं होता हैं और व्यक्ति किसी न किसी उलझनों में जूझता ही रहता हैं। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि यह सब ग्रहों का असर है एवं उसका निदान ढूंढा जा सकता हैं।
श्री दर्शन पंचांग कर्Ÿाा शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी कहते है कि जिस प्रकार पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति अन्य वस्तुआंे को अपनी ओर खिचती है, चन्द्रमा की शक्ति से पृथ्वी पर स्थित समन्दर में ज्वार भाटा देखा जा सकता है। ठीक वैसी ही सभी ग्रहों की अपनी अपनी गुरूत्वाकर्षण और चुम्बकीय शक्ति होती है जिसका असर एक दूसरे पर होने से ब्रह्माण्ड के सभी पिण्ड अपनी निश्चित परिधि या स्थान पर स्थित रहते है, वही गुरूत्वाकर्षण एवं चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव जब पृथ्वी पर पड़ता है, उसके समन्दरों पर पड़ता है तो वही प्रभाव उस पर निवास करने वाले प्राणि मात्र पर पड़ता है।
त्रिवेदी कहते है कि उन्हीं तरंगों का मानव पर पड़ने वाले प्रभाव या असर को बताने वाला शास्त्र ज्योतिष विज्ञान कहलाता है। जिसमें सर्वाधिक असर करने वाले हमारी पृथ्वी के नजदीकी पिण्डों में से ग्रहों व नक्षत्रों के आधार व प्रभाव को जानने हेतु हमारें तत्वज्ञों ने ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया जिसमें जब शिशु का जन्म होता है उस समय आकाश में रहे हुए ग्रहों की स्थिति बताने वाले चक्र को कुण्डली का रूप दिया गया।
इसी जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों का मानव पर अच्छे एवं बुरे दोनों ही प्रकार के प्रभाव को दर्शाने हेतु फलित ज्योतिष बनाया गया। जिसके अनुसार जब कोई ग्रह आप पर प्रतिकूल असर डालता है तो उसके निदान हेतु कई प्रकार के उपचार बताये गए है जिसमें वनस्पतियों द्वारा ग्रह शांति को इस प्रकार किया जा सकता है-
सूर्य ग्रह की शांति हेतु बेल की जड़ दाहिनें हाथ में गुलाबी धागे में बांधकर रविवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
चन्द्र ग्रह की शांति हेतु खिरनी या सत्यानाशी की जड़ दाहिनें हाथ में सफेद धागे में बांधकर सोमवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
मंगल ग्रह की शांति हेतु अनन्त मूल या नागजिन्दा की जड़ दाहिनें हाथ में लाल धागे में बांधकर मंगलवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
बुध ग्रह की शांति हेतु विधारा या तांबेसर की जड़ दाहिनें हाथ में हरे धागे में बांधकर बुधवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु मोगरा या केले की जड़ दाहिनें हाथ में पीले धागे में बांधकर गुरूवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
शुक्र ग्रह की शांति हेतु सप्तपर्णी या सरपंखा की जड़ दाहिनें हाथ में श्वेत चमकीले धागे में बांधकर शुक्रवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें। इसमें सप्तपर्णी की जड़ शनिवार को धारण करने तो ज्यादा उŸाम रहेगा।
शनि ग्रह की शांति हेतु बिच्छू की जड़ दाहिनें हाथ में काले धागे में बांधकर शनिवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
राहु ग्रह की शांति हेतु श्वेत चंदन की जड़ दाहिनें हाथ में नीले धागे में बांधकर बुधवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
केतु ग्रह की शांति हेतु असगंध की जड़ दाहिनें हाथ में आसमानी धागे में बांधकर गुरूवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
जो व्यक्ति ग्रह दोष हेतु महंगे खर्च नहीं कर पाते उनके लिए यह उपाय कारगर सिद्ध हो सकता है।
संसार में मानव मात्र यही चाहता कि वह हमेशा सुखी रहे पर ऐसा हमेशा नहीं होता हैं और व्यक्ति किसी न किसी उलझनों में जूझता ही रहता हैं। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि यह सब ग्रहों का असर है एवं उसका निदान ढूंढा जा सकता हैं।
श्री दर्शन पंचांग कर्Ÿाा शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी कहते है कि जिस प्रकार पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति अन्य वस्तुआंे को अपनी ओर खिचती है, चन्द्रमा की शक्ति से पृथ्वी पर स्थित समन्दर में ज्वार भाटा देखा जा सकता है। ठीक वैसी ही सभी ग्रहों की अपनी अपनी गुरूत्वाकर्षण और चुम्बकीय शक्ति होती है जिसका असर एक दूसरे पर होने से ब्रह्माण्ड के सभी पिण्ड अपनी निश्चित परिधि या स्थान पर स्थित रहते है, वही गुरूत्वाकर्षण एवं चुम्बकीय तरंगों का प्रभाव जब पृथ्वी पर पड़ता है, उसके समन्दरों पर पड़ता है तो वही प्रभाव उस पर निवास करने वाले प्राणि मात्र पर पड़ता है।
त्रिवेदी कहते है कि उन्हीं तरंगों का मानव पर पड़ने वाले प्रभाव या असर को बताने वाला शास्त्र ज्योतिष विज्ञान कहलाता है। जिसमें सर्वाधिक असर करने वाले हमारी पृथ्वी के नजदीकी पिण्डों में से ग्रहों व नक्षत्रों के आधार व प्रभाव को जानने हेतु हमारें तत्वज्ञों ने ज्योतिष शास्त्र का निर्माण किया जिसमें जब शिशु का जन्म होता है उस समय आकाश में रहे हुए ग्रहों की स्थिति बताने वाले चक्र को कुण्डली का रूप दिया गया।
इसी जन्म कुण्डली में स्थित ग्रहों का मानव पर अच्छे एवं बुरे दोनों ही प्रकार के प्रभाव को दर्शाने हेतु फलित ज्योतिष बनाया गया। जिसके अनुसार जब कोई ग्रह आप पर प्रतिकूल असर डालता है तो उसके निदान हेतु कई प्रकार के उपचार बताये गए है जिसमें वनस्पतियों द्वारा ग्रह शांति को इस प्रकार किया जा सकता है-
सूर्य ग्रह की शांति हेतु बेल की जड़ दाहिनें हाथ में गुलाबी धागे में बांधकर रविवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
चन्द्र ग्रह की शांति हेतु खिरनी या सत्यानाशी की जड़ दाहिनें हाथ में सफेद धागे में बांधकर सोमवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
मंगल ग्रह की शांति हेतु अनन्त मूल या नागजिन्दा की जड़ दाहिनें हाथ में लाल धागे में बांधकर मंगलवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
बुध ग्रह की शांति हेतु विधारा या तांबेसर की जड़ दाहिनें हाथ में हरे धागे में बांधकर बुधवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु मोगरा या केले की जड़ दाहिनें हाथ में पीले धागे में बांधकर गुरूवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
शुक्र ग्रह की शांति हेतु सप्तपर्णी या सरपंखा की जड़ दाहिनें हाथ में श्वेत चमकीले धागे में बांधकर शुक्रवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें। इसमें सप्तपर्णी की जड़ शनिवार को धारण करने तो ज्यादा उŸाम रहेगा।
शनि ग्रह की शांति हेतु बिच्छू की जड़ दाहिनें हाथ में काले धागे में बांधकर शनिवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
राहु ग्रह की शांति हेतु श्वेत चंदन की जड़ दाहिनें हाथ में नीले धागे में बांधकर बुधवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
केतु ग्रह की शांति हेतु असगंध की जड़ दाहिनें हाथ में आसमानी धागे में बांधकर गुरूवार के दिन पुष्य आदि अच्छे नक्षत्र व समय में धारण करें।
जो व्यक्ति ग्रह दोष हेतु महंगे खर्च नहीं कर पाते उनके लिए यह उपाय कारगर सिद्ध हो सकता है।
No comments:
Post a Comment