सूतक समस्या विचार =
जन्म मरण आदि के कारण जो मृतक हो जाते हैं उनमें शुभ कर्म निषिद्ध है। जब तक शुद्धि न हो जाय तब तक यज्ञ, ब्रह्म भोजन आदि नहीं किये जाते। परन्तु यदि वह शुभ कार्य प्रारंभ हो जाय तो फिर सूतक उपस्थिति होने पर उस कार्य का रोकना आवश्यक नहीं। ऐसे समयों पर शास्त्रकारों की आज्ञा है कि उस यज्ञादि कर्म को बीच में न रोककर उसे यथावत चालू रखा जाय। इस सम्बंध में कुछ शास्त्रीय अभिमत नीचे दिये जाते हैं-
यज्ञे प्रवर्तमाने तु जायेतार्थ म्रियेत वा।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
पूर्व संकल्पिते कार्ये न दोष स्तत्र विद्यते।
यज्ञ काले विवाहे च देवयागे तथैव च।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।
हूय माने तथा चाग्नौ नाशौचं नापि सतकम्।
दक्षस्मृति 6।19-20
यज्ञ हो रहा हो ऐसे समय यदि जन्म या मृत्यु का सूतक हो जाए तो इससे पूर्व संकल्पित यज्ञादि धर्म में कोई दोष नहीं होता। यज्ञ, विवाह, देवयोग आदि के अवसर पर जो सूतक होता है उसके कारण कार्य नहीं रुकता।
न देव प्रतिष्ठोर्त्सगविवाहेषु देशविभ्रमे।
नापद्यपि च कष्टायामा शौचम्॥
नापद्यपि च कष्टायामा शौचम्॥
-विष्णु स्मृति
देव प्रतिष्ठा, उत्सर्ग, विवाह आदि में उपस्थित सूतक में बाधा नहीं।
विवाह दुर्ग यज्ञेषु यात्रायाँ तीर्थ कर्मणि।
न तत्र सूतकं तद्वत कर्म याज्ञादि कारयेत॥
न तत्र सूतकं तद्वत कर्म याज्ञादि कारयेत॥
-पैठानसि
विवाह, किला बनाना, यज्ञ, यात्रा, तीर्थ कर्म के समय यदि सूतक हो जाय तो उसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
यज्ञ करने वाले यजमान पर ही नहीं यह बात ऋत्विज् ब्रह्मा आचार्य आदि पर भी लागू होती है। उनके यहाँ कोई सूतक हो जाय तो वह यज्ञ करने-कराने या उसमें भाग लेने के अनधिकारी नहीं होते तथा-
ऋत्विजाँ यजमानस्य तत्पत्न्या देशकस्य च।
कर्ममध्ये तु नाशौच मन्त एव तु तद्भवेत-॥
कर्ममध्ये तु नाशौच मन्त एव तु तद्भवेत-॥
ऋत्विजों को यजमान को, यजमान की पत्नी को और आचार्य को जन्म या मरण का सूतक नहीं लगता। यज्ञ कर्म की पूर्ति हो जाने पर ही उन्हें सूतक लगता है।
ऋत्विजाँ दीक्षितानाँ च याज्ञिकं कर्म कुर्वता
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